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*भये प्रकट हनुमंता वीर बलवंता भक्तन के दुख हर्ता………*

*मेघा तिवारी की रिपोर्ट*

 

भोपाल(मध्य प्रदेश) l

12 अप्रैल शनिवार को समूचे देश में महाबली संकट मोचन भक्तवत्सल हनुमानजी महाराज का प्रकटोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया गया। हनुमान जी वानरों के राजा केसरी और उनकी पत्नी अंजना के छः पुत्रों में सबसे बड़े और पहले पुत्र हैं। रामायण के अनुसार वे जानकी के अत्यधिक प्रिय हैं। इस धरा पर आठ चिरंजीवी हैं उनमें से सात को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं तथा एक को श्राप के कारण अमरत्व मिला। हनुमान जी का अवतार भगवान राम की सहायता के लिये हुआ। हनुमान जी के पराक्रम की असंख्य गाथाएँ प्रचलित हैं। इन्होंने जिस तरह से लंका में अपनी बल बुध्दि का परचम लहराया था।

ज्योतिषीयों के सटीक गणना के अनुसार हनुमान जी का जन्म 85 लाख 58 हजार 112 वर्ष पहले त्रेतायुग के अन्तिम चरण में चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 बजे भारत देश में आज के हरियाणा राज्य के कैथल जिले में हुआ था जिसे पहले कपिस्थल कहा जाता था।

इन्हें बजरंगबली के रूप में जाना जाता है क्योंकि इनका शरीर एक वज्र की तरह है। वे पवन-पुत्र के रूप में जाने जाते हैं। वायु अथवा पवन(हवा के देवता) ने हनुमान को पालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

मारुत(संस्कृत: मरुत्) का अर्थ हवा है, नन्दन का अर्थ बेटा है। हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान “मारुति” अर्थात “मारुत-नन्दन” (वायु के बेटे) हैं। हनुमान जी के धर्म पिता वायु थे, इसी कारण उन्हे पवन पुत्र के नाम से भी जाना जाता है।

 

बचपन से ही दिव्य होने के साथ साथ उनके अन्दर असीमित शक्तियों का भण्डार था।

 

हनुमान सूरज को फल मानते हुए पकड़ने के लिए आगे बढ़ते हैं।

इनके जन्म के पश्चात् एक दिन वे उदय होते हुए सूर्य को फल समझकर उसे खाने के लिए उसकी ओर जाने लगे थे।

 

हनुमान जी बालपन मे बहुत नटखट थे, वो अपने इस स्वभाव से साधु-संतों को सता देते थे। बहुधा वो उनकी पूजा सामग्री और आदि कई वस्तुओं को छीन-झपट लेते थे। उनके इस नटखट स्वभाव से रुष्ट होकर साधुओं ने उन्हें अपनी शक्तियों को भूल जाने का एक लघु शाप दे दिया। इस शाप के प्रभाव से हनुमान अपनी सब शक्तियों को अस्थाई रूप से भूल जाते थे और पुनः किसी अन्य के स्मरण कराने पर ही उन्हें अपनी असीमित शक्तियों का स्मरण होता था। ऐसा माना जाता है कि अगर हनुमान शाप रहित होते तो रामायण में राम-रावण युद्ध का स्वरूप पृथक(भिन्न, न्यारा) ही होता। कदाचित वो स्वयं ही रावण सहित सम्पूर्ण लंका को समाप्त कर देते। इन्द्र के वज्र से हनुमानजी की ठुड्डी (संस्कृत: में हनु ) टूट गई थी। इसलिये उनको हनुमान का नाम दिया गया। इसके अलावा ये अनेक नामों से प्रसिद्ध है जैसे बजरंग बली, मारुति, अंजनि सुत, पवनपुत्र, संकटमोचन, केसरीनन्दन, महावीर, कपीश, शंकर सुवन आदि।

 

*बारह नाम , उनके अर्थ और उनका महत्व

 

***हनुमान – जिनकी ठोड़ी टूटी हो

रामेष्ट – श्री राम भगवान के भक्त

उधिकर्मण – उद्धार करने वाले

अंजनीसुत – अंजनी के पुत्र

फाल्गुनसखा – फाल्गुन अर्थात् अर्जुन के सखा

सीतासोकविनाशक – देवी सीता के शोक का विनाश करने वाले

वायुपुत्र – हवा के पुत्र

पिंगाक्ष – भूरी आँखों वाले

लक्ष्मण प्राणदाता – लक्ष्मण के प्राण बचाने वाले

महाबली – बहुत शक्तिशाली वानर

अमित विक्रम – अत्यन्त वीरपुरुष

दशग्रीव दर्प: – रावण के गर्व को दूर करने वाले।***