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रायपुर। जशपुर जिले के कुनकुरी शहर में एशिया का दूसरा सबसे बड़ा चर्च है। इस चर्च को इसकी विशालता के लिए महागिरजाघर भी कहा जाता है। इस चर्च की खास बात ये है कि सालों पहले जब चर्च को बनाया गया तब पहाड़ और जंगलों से ये इलाका घिरा हुआ था। लेकिन देखते ही देखते ही ये कस्बा एक शहर के तौर विकसित हो गया है। यहां अस्पताल और एजुकेशनल इंस्टीट्यूट खुले, फिर बाजार आए, व्यापारी आए और अब यहां 10 हजार से अधिक परिवार रहते हैं।

दरअसल, इस महागिरजाघर में क्रिसमस का त्योहार सादगी भरे अंदाज में मनाया जा रहा है। जशपुर के बिशप एम्मानुएल केरकेट्टा ने कोरोना महामारी के असर को देखते हुए क्रिसमस पर्व सादगी से मनाने की अपील की है। कैथोलिक सभा प्रतिनिधियों की बैठक में यह तय किया गया। लोगों से सार्वजनिक धार्मिक गतिविधियों में सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन करने, पटाखे न जलाने की अपील की जा रही है।

ऐसे करते है लोग क्रिसमस तैयारी पूरे कुनकुरी में ईसाई समुदाय के लोग अधिक रहते हैं। यहां क्रिसमस के मौके पर अलग ही माहौल देखने को मिलता है। यहां प्रभु के वचन को सुनना, चिंतन करना, त्याग तपस्या करना, क्षमा करना, मेल-मिलाप संस्कार में भाग लेना, परोपकारी काम करना जैसी एक्टविटीज होती रहती हैं।

घरों की साफ-सफाई करते हैं, उन्हें सजाते हैं। क्रिसमस कैरोल का गायन करना, कार्ड बनाना, नए कपड़े खरीदना, तोहफा देना, मिठाई -केक बनाने का काम हर घर में होता है। चर्च से जुड़ा अमेजिंग फैक्ट इस चर्च की 7 छतें हैं। इन सातों छतों में प्रभु यीशु का संदेश छिपा होना माना गया है। इन्हें कैथोलिक समुदाय के 7 प्रतीकों से जुड़ा माना जाता है। कैथोलिक वर्ग में 7 नंबर को महत्वपूर्ण माना गया है, हफ्ते में दिन भी 7 होते हैं, 7वां दिन भगवान का दिन होता है। चर्च में 7 छतें हैं। यह सभी एक ही बीम पर टिकी हैं।

 

चर्च प्रबंधन के अनुसार यह दिखाता है सभी मानवों को ईश्वर ने ही संभाल रखा है। चर्च का आकार अर्धगोलाकार है। यह भगवान की फैली हुई बाहों की तरह है, जो सभी मानवों को अपने पास बुलाती है। ईसाई धर्मग्रंथों में सात को पूर्णता का प्रतीक माना गया है।

सात संस्कार बपतिस्मा, परम प्रसाद, पाप स्वीकार, दृढ़ीकरण, पुरोहिती करण और अंत मिलन होते हैं। इस चर्च को बनाने वाले इसके वास्तुकार बेल्जियम के जेएस कार्सो थे। वो तब जशपुर के कुनकरी आए थे और यहां इस चर्च का काम शुरू किया गया था। इस चर्च का निर्माण 1962 में शुरू हुआ जो 1979 में पूरा हुआ। चर्च का लोकार्पण 1982 में हुआ। 3400 वर्गफीट आकार के इस चर्च में सात छतें और सात दरवाजे हैं। यहां 10 हजार से अधिक श्रद्धालु एक साथ बैठ सकते हैं।